पद्य निरूपणे अपेक्षा – विकसता विकसता विकसावे : भाग १ अपेक्षा – विकसता विकसता विकसावे : भाग २ दीपक तू हरदम जलता जा आम्ही जाउच जाऊ बनें हम हिंद के योगी असू आम्ही सुखाने जननी जन्मभूमी स्वर्ग से महान है बलसागर भारत होवो हम करें राष्ट्र आराधन असार जीवित केवळ माया रडगाणे हे गाऊ नका आज तन मन और जीवन नवीन पर्व के लिए जननी जगन्मात की… अविरत श्रमणे हेच जिणे मातृ-भू की मूर्ति मेरे … दिव्य ध्येय की ओर तपस्वी अब तक सुमनों पर चलते थे पद्य निरुपणाची भूमिका / वंदना के इन स्वरो मे