हे वीर विवेकानंद हिन्दुयशमूर्ति... हिन्दुयशमूर्ति...
हे युवकप्रवर, तुम युवहृदयों की स्फूर्ती ॥ ध्रु. ॥
माँ विश्वधर्म की देखी जब बन्धन में
तुम क्षुब्ध सिंह से व्याकुल थे अंतर में
उसके मुक्ती की प्रखर आस मन में थी ॥ १ ॥
शत आघातों से मर्माहत थी कब की
वह हिन्दुचेतना तुमने संजीवित की
अर्पण की उसको निर्भयता-यश-किर्ती ॥ २ ॥
स्मरते ह तेरे घनगर्जित से शब्द
मन वज्र बनें, तन बन जायें फौलाद
दस दिशा जीतने सिद्ध बने वीरव्रती ॥ ३ ॥
है पुकारती तव अमृतवाणी हमको
रे, अतुलबलस्वी करो मातृभूमी को
युवशक्ति चाहिये कार्यशरण, पुरुषार्थी ॥ ४ ॥
जो सतेज सुन्दर जीवनपुष्प खिलता है
उससे ही पूजा स्वदेश की करनी है
अब धर्मजागरण बने ध्येय की ज्योती ॥ ५ ॥